मंगलवार, 13 अगस्त 2024

कविता - आज़ादी की गाथा


शीर्षक - आजादी की गाथा

स्वतंत्रता के सूरज की,  
रश्मियाँ बिखरी हैं चहुँ ओर,  
वीरों के बलिदान से सजी,  
ये धरती गाती है गीत और।  

लहू से रंगी थी ये धरती,  
कभी धुएं से थी काली,  
आज तिरंगे के नीचे,  
महक रही है वो लाली।  

हर पत्ता, हर फूल यहाँ,  
गाता है आज़ादी की गाथा,  
शांत हवा में भी छिपी है,  
वीरों की अनमोल प्रथा।  

बोलते हैं आज हम खुलकर,  
वो बातें जो छिपी थीं कभी,  
धरती पर हक है अपना,  
अब नहीं कोई जंजीर कभी।  

नमन करो उन माँओं को,  
जिनके लाल लौटे नहीं,  
नमन करो उन बहनों को,  
जिनके भाई फिर कभी सोए नहीं।  

आओ मिलकर हम सब,  
वो एकता की मशाल जलाएं,  
जिसकी रोशनी में ये वतन,  
सदा अमर रहे, चमकता जाए।  

ये तिरंगा ऊँचा रहे सदा,  
हर दिल में हो इसकी पहचान,  
हमारे खून में बसी है आज़ादी,  
हम हैं इस धरती के अभिमान।  

कवि - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव 
          प्रतापगढ़ ( उत्तर प्रदेश )

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कविता - आज़ादी की गाथा

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